Satlok Ashram Karontha

satlok ashram karontha - karontha Scandal exposed

Tuesday, October 20, 2009

The Truth Behind Karontha Scandal

Sant Rampal Ji - Satlok Ashram Karontha - Karontha Scandal Exposed

कबीर, साच कहूं तो जग मार ही, झूठ कही न जाई हो।
सांच न पूरा पावते,
झूठे जग पतियाई हो।।

करौंथा काण्ड के ज़रिए संत रामपाल जी महाराज व सतलोक आश्रम करौंथा के ऊपर अनर्गल आरोप लगा कर उनकी छवि खराब करने की कुचेष्टा की गई और धर्म के नाम पर कुछ अनैतिक हो रहा था ऐसा प्रचार करने का प्रयास किया गया। नादान लोगों को नारेबाजी तथा शोषेबाजी के लिए उकसाया और प्रशासन तथा समाज को जगतगुरु रामपाल जी के विरूद्ध गुमराह करने का प्रयास किया गया।

उत्तम तो यह होता कि ये ओछे हथकंडे अपना रहे तथाकथित धर्म के ठेकेदार महाराज जी की तरह समाचार पत्रों में लेख-प्रतिलेख लिख कर अपनी बात को, अपने धर्म को समाज के सामने साबित करते, फिर भी समाज के प्रबुद्ध व सम्माननीय, पढ़े लिखे विद्वजनों से आह्वान है कि वे एक बार तत्वदर्शी संत रामपाल जी के तर्कों को सुने, सच्चाई को जानें और इन अज्ञानी, लकीर के फकीर, दम्भी धर्म लोलुपों से सदियों से होते आ रहे शोषण से मनुष्य को मुक्त करवाएं।

आज से लगभग छह सौ वर्ष पूर्व जब परम पूज्य कबीर परमेश्वर आये थे तो उन्होंने धर्मसमाज को आडम्बर और रूढ़ियों का परित्याग करने और भक्ति क्या होती है यह अपनी साखियों के द्वारा बताया। जरा सोचिए कबीर साहेब ने जब प्रत्येक धर्म में प्रचलित धार्मिक साधना में खोट बताया तो सही भक्ति भी बताई थी, उस वक्त के ये नकली धर्मगुरु उनसे छिपते फिरते थे और पीछे से उन पर मिथ्या आरोप व लांछन लगाकर उनको बदनाम करने का प्रयास करते थे। इस बात का इतिहास गवाह है कि आज कबीर साहेब की परम्परा से संत रामपाल जी महाराज पर वही षडयंत्र रचा गया है पर यह नहीं जानते कि आज के समय में हर आदमी पढ़ा लिखा, विवेकी और सही गलत की समझ रखने वाला है।
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सतलोक आश्रम सत्य आध्यात्मिक ज्ञान व मानव उत्थान का एक मात्र स्थान है जहाँ सभी धर्मों के ग्रंथों के आधार पर तत्व ज्ञान का प्रचार किया जाता है परंतु कुछ धर्मगुरुओं तथा धर्माचारियों द्वारा तत्वज्ञान के अभाव के कारण वे अपने अधूरे व असत्य ज्ञान का खुलासा होना सहन न कर सके इसलिए उन्होनें इस कहावत को चरितार्थ कर दिया:

ज्ञानी से ज्ञानी लड़े, करे ज्ञान की बात
मूर्ख से मूर्ख लड़े , के घूँसा के लात


अर्थात ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान का जवाब ज्ञान से देते हैं झगड़े से नहीं परंतु उन धर्माचारियों ने झगड़े का रास्ता अपनाया अपनी कमियों को छिपाने का कोई और तरीका ना मिलने पर वे उद्दन्डता पर उतर आए और सच्चाई को दबाने का असफल प्रयास किया।


प्रत्येक माह की पूर्णिमा के अनुरूप आश्रम में दिनांक 9 जुलाई से 11 जुलाई 2006 का सत्संग पूर्व निर्धारित था. सत्संग के पहले दिन 9 जुलाई को ही सतलोक आश्रम को उपद्रवकारियो ने चारों तरफ से घेर लिया. शरारती तत्वों ने 9 जुलाई के बाद आश्रम में खाने पीने का सामान तक नहीं आने दिया तथा पुलिस की मौजूदगी में आश्रम के बिजली के कनेक्शन काट डाले व पानी की व्यवस्था को भी नष्ट कर दिया गया। अगले चार दिन तक आश्रम के चार-पांच हजार श्रद्धालु जिसमें ज्यादातर छोटे बच्चे, महिलाएं तथा बूढ़े व्यक्ति भी थे, आश्रम में बंद रखकर भोजन-पानी-बिजली व चिकित्सा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी तरसाया व तड़पाया गया। इस पूरी घटना के दौरान मीडिया को आश्रम तक नहीं पहुंचने दिया गया और बाहर एस.पी. व डी.एस.पी. ने पत्रकारों को सारी स्थिति काबू में बताई जबकि उस वक्त आश्रम में चार से पाँच हजार श्रद्धालु भूखे-प्यासे रह रहे थे और बिजली व चिकित्सा जैसी सुविधाओं तक का अभाव था। बच्चे रो रहे थे और वृद्धों को दवाईयां तक समय पर नहीं मिल पा रही थी।

12 जुलाई, 2006 तक यह स्थिति बनी रही और असामाजिक तत्वों को इक्टठा किया जाता रहा। 12 जुलाई 2006 को भारी संख्या में असामाजिक तत्वों को टैम्पो और ट्रकों के जरिये डीघल गाँव में इक्टट्ठा किया गया। इन तत्वों के हाथों में सतलोक आश्रम पर आक्रमण करने के लिए जेली, गंडासे, पैट्रोल बम्स, बन्दूकें तथा दूसरे हथियार थे। 12 जुलाई 2006 को लगभग दिन के 12:30 बजे इन लोगों ने सतलोक आश्रम की तरफ धावा बोल दिया। उस समय आश्रम के पास पुलिस उपस्थित थी।
आक्रमणकारियों को रोकने की चेष्टा की। पहले पानी छोड़ा, फिर आँसू गैस के गोले दागे। फिर भी आक्रमण करने वाली भीड़ नहीं रूकी तो पुलिस ने गोलियां चलाई। उधर से आक्रमणकर्ताओं ने भी गोलियां चलाई। इसमें कई व्यक्ति घायल हो गए तथा एक की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात आक्रमणकारी अत्यधिक बौखला गए तो पुलिस व प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। आश्रम से दूर जाकर पुलिस व जिले के वरिष्ठ अधिकारी मूक दर्शक बन कर खड़े रहे। इसके पश्चात आक्रमणकारियों ने आश्रम को चारों तरफ से घेर लिया। वहां पर मौजूद पुलिस भी आश्रम के सामने से हट गई। असामाजिक तत्वों ने आश्रम पर पत्थर, पैट्रोल बम्स, बन्दूकों तथा अन्य हथियारों से आक्रमण शुरू कर दिया तथा उसको रोकने के लिए पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। इसको रोकने के लिए भक्तों ने टेलीफोन पर जिला उपायुक्त व पुलिस अधीक्षक से भी प्रार्थना की लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया।

इलैक्ट्रोनिक मिडिया को भक्तों ने मौके पर आने के लिए प्रार्थना की ताकि वो इस सारे घटना चक्र की रिकार्डिंग कर ले और सतलोक आश्रम को नष्ट करने के षड़यन्त्र का खुलासा कर सकें। लेकिन दुर्भाग्यवश पुलिस ने उनको ऐसा नहीं करने दिया और उनके हाथों से कैमरा छीन कर तोड़ दिया गया और उनको पीटा भी गया और यह कहा गया कि उन्होंने यदि दोबारा कोई इस घटना की कवरेज की तो उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। अपने को चारों तरफ से घिरा देखकर और आश्रम के अन्दर मौजूद औरतों, बच्चों और बूढों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए और आत्मरक्षा को ध्यान में रखते हुए आक्रमणकारियों को खदेड़ने के उद्देश्य से आश्रम के सुरक्षा दस्ते ने हवाई फायर किए। इन सब के बाद जिला प्रशासन की नींद खुली और करौंथा गाँव के आस-पास धारा 144 सी.आर.पी.सी. लगाई जो केवल एक नाटक था। यह सिलसिला 13.7.2006 सुबह दो बजे तक चलता रहा।


दिनांक 13.07.2006 सुबह लगभग 2:30 बजे भारी पुलिस बल द्वारा आश्रम में आकर भक्तों को हमारे बरवाला आश्रम में सुरक्षित छोड़ने की पेशकश की गई। बाहर आते वक्त दो लाईनें बनवा दी गई और प्रत्येक श्रद्धालु व उसके सामान की बड़ी गहनता से तलाशी लेकर मैन गेट पर खड़ी बसों में बिठाया गया ताकि कोई ऐसा-वैसा सामान आश्रम से बाहर न जा पाए। आश्रम खाली हो जाने के बाद पुलिस ने आश्रम को सील कर दिया और भक्तों को डरा-धमका कर उनके पैसे, मोबाईल फोन आदि छीनकर पानीपत और रोहतक छोड़ दिया गया। पुलिस द्वारा आश्रम के वैध लाइसेंसी हथियारों को बरामद कर लिया गया और उन्हें अवैध बताकर आपत्तिजनक सामग्री मिलने की जानकारी मीडिया में दी गई। कथित आपत्तिजनक सामग्री को पुलिस ने नहीं दिखाया। क्यों? क्योंकि वास्तव में आश्रम में न तो कोई आपत्तिजनक सामग्री थी और न ही कोई अवैध हथियार थे। संत रामपाल जी महाराज के साथ उनके अनुयाईयों को भी हवालात में बंद कर दिया गया और अन्य अनुयाईयों के पैसे-मोबाईल आदि छीनकर मारपीट व अभद्र व्यवहार करते हुए छोड़ दिया गया। 13 जुलाई, 2006 से आश्रम को सी.आर.पी.एफ. व हरियाणा पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले लिया।



उपद्रवकारियो को बचाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने पहले झूठी खबरें दी फिर बाद में खुद उनका खंडन किया. टेलीविज़न व समाचार पत्रों ने भी प्रशासन के दबाव में असत्य, निराधार व झूठे समाचारों का प्रचार किया. जिस भी प्रेस रिपोर्टर ने सत्यता का साथ देना चाहा उन्हें भी पुलिस / प्रशासन ने मार-पीटकर भगा दिया.


इसके बाद कुछ अखबारों के पत्रकारों ने हरियाणा स्तर पर अपनी प्रसिद्धि व विशेषता सिद्ध करने के लिए एक दूसरे से बढ़-चढ़कर रस्सी का सांप बनाकर छापना प्रारम्भ कर दिया, जैसे कि आश्रम में आपत्तिजनक सामग्री मिलना, सुरंग मिलना, हथियारों का जखीरा मिलना, नकदी की भरी कई बोरियां मिलना, 30 किलो सोना मिलना आदि-आदि। इस तरह की प्रमाण रहित खबरों को प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने खूब हवा दी जबकि पुलिस प्रशासन तक स्पष्ट मना कर रहा था कि ”आश्रम की पूर्ण रूप से तलाशी हो चुकी है लेकिन जिस तरह से मीडिया ऐसी प्रमाण रहित खबरें छाप रहा है वहां ऐसा कुछ नहीं मिला है। यह विचार रोहतक के एस.पी. डा. सी.एस. राव के दिनांक 19 जुलाई 2006के ‘हरिभूमि‘ में और दिनांक 20 जुलाई 2006 दैनिक जागरण समाचार पत्र में हैं जो मीडिया में आ चुके हैं।



उस वक्त के घटनाक्रम को समाचार पत्रों की ज़ुबानी देखिए और आप खुद सत्य का निर्णय कीजिए...